कश्मीर फाइल्स फिल्म रिलीज होने के बाद से ही कश्मीरी हिंदुओं की बर्बर हत्याओं की निर्मम कहानियाँ लगातार सामने आ रही हैं। इस फिल्म के रिलीज होने के बाद से ही कश्मीरी हिंदुओं के साथ हुए अत्याचारों पर बहस शुरू हो गई है।
हाल ही में उत्तरी दिल्ली के स्कूल का नाम बदलकर टीकालाल टपलू के नाम पर कर दिया गया। स्वर्गीय टीकालाल टपलू को कश्मीरी पंडितों का पहला शहीद माना जाता है। उन्हें मारकर ही आतंकवादियों ने 1990 के कश्मीरी हिन्दू नरसंहार की शरुआत की थी। उनकी हत्या 14 सितंबर 1989 को गोली मारकर कर दी गई थी।
हालांकि उनसे पहले भी काफी बड़ी संख्या में आतंकवादी हिंदुओं के हत्याओं को अंजाम दे चुके थे।
कौन थे पंडित टीकालाल टपलू?
पंडित टीकालाल टपलू पेशे से वकील और भारतीय जनता पार्टी के नेता थे। उन्होंने वकालत की पढ़ाई अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से की थी। उनका जुड़ाव आरएसएस से भी था। वे कश्मीरी पंडितों का सबसे जाना पहचाना चेहरा था। लोग उन्हें लालाजी यानि बड़ा भाई कहते थे।
जिस समय उनकी हत्या की गई वह जम्मू-कश्मीर भाजपा के उपाध्यक्ष भी थे। वह श्रीनगर के चिंकराल मोहल्ले के रहने वाले थे।
टीकालाल टपलू की हत्या कैसे की गई?
अपने राष्ट्रवादी विचारों और कट्टरपंथ के अदम्य विरोध के कारण पंडित टीकालाल टपलू आतंकियों के निशाने पर थे। उन्हें इस बात का अंदेशा भी था कि आतंकी उन पर नजर रखे हुए हैं और हमला करने की फिराक में हैं। इसलिए उन्होंने अपने परिवार को दिल्ली शिफ्ट कर दिया था, हालांकि वह खुद कश्मीर लौट आए ताकि कश्मीर में हिंदुओं की आवाज बनी रहे।
एक दिन उन्होंने अपने घर के बाहर एक छोटी बच्ची को रोते हुए देखा। बच्ची का रोना सुनकर वह बिना कुछ सोचे समझे अपने घर से बाहर निकल आए और उसकी माँ से बच्ची के रोने का कारण पूछा।
बच्ची की माँ ने उन्हें बताया कि उसके स्कूल में कोई फ़ंक्शन है, जिसमें जाने के लिए उसके पास पैसे नहीं है। इसलिए वह रो रही है। टीकालाल टपलू ने बच्ची की माँ की बात सुनकर उसे गोद में उठाया और उसके हाथ में पाँच रुपये रख दिए।
बच्ची को चुप कराने के बाद वह जैसे ही वापस अपने घर की तरफ मुड़े आतंकवादियों ने उन पर हमला कर दिया और उन्हें गोलियों से भून दिया गया।
इस तरह कश्मीर में हिंदुओं की सबसे मुखर आवाज खामोश हो गई।
इस एक हत्या से आतंकियों ने दिया था कश्मीर के हिंदुओं को संदेश
दरअसल पंडित टीकालाल टपलू कश्मीर में हिंदुओं की सबसे मुखर आवाज माने जाते थे। उनके रहते कश्मीर में आतंकियों के मंसूबे कामयाब होना बहुत मुश्किल थे। इस एक हत्या से आतंकियों ने कश्मीरी हिंदुओं को संदेश दिया था कि कश्मीर में वे निजाम-ए-मुस्तफा लागू करना चाहते हैं।
पंडित टीकालाल टपलू की हत्या के बाद आतंकियों ने एक नारा दिया था कि
यहाँ क्या चलेगा, निजाम ए मुस्तफा
ला शरकिया ला गरबिया, इस्लामिया इस्लामिया;
जलजला आया है कुफ्र के मैदान में
लो मुजाहिद आ गए हैं मैदान में
सभी की मदद को हमेशा तैयार रहते थे टपलू
पंडित टीकालाल टपलू ने अपनी वकालत की पढ़ाई का उपयोग कभी भी पैसा कमाने के लिए नहीं किया। उन्होंने वकालत से जो कुछ भी कमाया उसे विधवा औरतों और उनके बच्चों की पढ़ाई में खर्च कर दिया। वह कभी भी इस काम में धर्म जाति नहीं देखते थे। इसके अलावा उन्होंने घाटी की बहुत सी गरीब मुस्लिम लड़कियों की शादी भी अपने खर्च पर करवाई थी।
उनका व्यक्तित्व ऐसा था कि सभी जाति-धर्मों के लोग उनका सम्मान करते थे।